भारत और बांग्लादेश के बीच एक प्रोटोकॉल (समझौता) है, जिसके तहत दोनों देशों के जलयान विनिर्दिष्ट नदी मार्गों से आवाजाही कर सकते हैं । भारत और बांग्लादेश के बीच अंतर्देशीय जल पारगमन और व्यापार होता है । समझौता के तहत प्रत्येक देश में चार विशिष्ट नदी मार्ग और 5 बंदरगाह विनिर्धारित किए गए हैं । वर्तमान समझौता मार्च 2020 तक मान्य है इसके बाद उसके स्वत: नवीनीकरण का प्रावधान है । ये इस प्रकार हैं: -
- कोलकाता - हल्दिया - रायमोंगल - छालना - खुलना - मोंगला – कौखाली - बरिसाल - हिजला - चाँदपुर - नारायणगंज - अरिचा - सिराजगंज - बहादुरबाद - चिलमारी - धुब्री - पांडु- सिलघाट; और इसके विपरीत क्रम से (एक तरफ से कुल लंबाई : 1720 किलोमीटर)
- कोलकाता - हल्दिया - रायमोंगल - मोंगला - कोखाली - बरिसाल - हिजला - चांदपुर - नारायणगंज - भैरब बाज़ार – अजमीरी गंज - मरकुली - शेरपुर - फेंचूगंज - ज़ाकीगंज – करीमगंज ; और इसके विपरीत क्रम से (एक तरफ से कुल लंबाई : 1318 किलोमीटर)
- राजशाही - गोदगरी – धुलियन; और इसके विपरीत (एक तरफ से कुल लंबाई: 78 किमी)
- करीमगंज - जाकीगंज - फेंचुगंज - शेरपुर - मार्कुली - अजमीरीगंज - भैरब बाजार - नारायणगंज - चांदपुर - अरिचा - सिरागंज - बहादुराबाद - चिलमारी - धुब्री - पांडु- सिलघाट ; और इसके विपरीत क्रम से (एक तरुफ से कुल लंबाई: 1416 किलोमीटर)
दोनों देशों में पांच नामित पत्तन निम्नानुसार हैं: -
क्रम सं. | इंडिया | बांग्लादेश |
1 | कोलकाता | नारायणगंज |
2 | हल्दिया | खुलना |
3 | करीमगंज | मोंगला |
4 | पांडु | मोंगला |
5 | सिलघाट | आशुगंज |
कई वर्षों से भारत - बंगलादेश प्रोटोकॉल (आई बी पी) मार्ग के माध्यम से कार्गो का परिवहन नियमित रूप से हो रहा है । हालांकि, इन प्रोटोकॉल मार्गों पर भारतीय माल की ढुलाई पिछले 14-15 वर्षों में कम हुई है । इसका मुख्य कारण गैर-मानसून महीनों के दौरान आई बी पी के प्रखंड अर्थात सिराजगंज - दिखौआ और आशूगंज - जाकिगंज में न्यूनतम उपलब्ध गहराई का कम रहना है । इस पर विचार करते हुए, हाल ही में, भारत सरकार और बांग्लादेश सरकार इन प्रखंडों में (भारत सरकार के 80% निधि के साथ) ड्रेजिंग कार्य करने पर सहमत हुए हैं। इस पहल से उम्मीद है कि अजप माध्यम द्वारा हल्दिया और कोलकाता पत्तन के बीच तथा असम के गुवाहाटी/ सिलचर और ब्रह्मपुत्र और बराक नदियों के साथ लगे अन्य स्थानों पर माल ढुलाई में काफी तेजी आएगी । अन्तर्देशीय जलमार्ग के माध्यम से कार्गो की ढुलाई काफी हद तक बढ़ जाने की सम्भावना है।